*दौर-ए-गर्दिश में भी,* *जीने का मज़ा देते है...* *चंद दोस्त हैं जो वीरानों में भी,* *महफ़िल सजा देते है...* *सुनाई देती है अपनी हंसी,* *उनकी बातों में...* *दोस्त भी अक्सर,* *जीने की वजह देते हैं.. .
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