वो जो बिखर रही थी हौले हौले से मुझमे कहीं.... आरज़ू थी तेरी.. रोका बहुत...समेटा भी मैंने ना हाथों में आई ना समझ में ही वो जो छू रही थी मन को मेरे ...ख्वाहिश थी तेरी ऐतबार टूटा खुदसे..हुआ फिर वो यहां वहां वो जो घुल रही थी साँसों में...महक थी तेरी आहटें आने लगी...मुझको भरमाने लगीं... वो जो सरसराहट थी कानों में मेरे....आवाज़ें थीं तेरी.... तू बिखर रहा था...,महक रहा था...बोल रहा था तू मुझमे ना जाने कब से...रह रहा था... वो जो नासमझ सी.. समझ हुई थी... कुछ और नहीं थी...मुहब्बत थी तेरी.....

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