"हद-ए-शहर" से निकली, तो गाँव गाँव चली. कुछ यादें मेरे संग, पांव-पांव चली. सफ़र जो धूप का किया, तो तजुर्बा हुआ, वो जिंदगी ही क्या, जो छाँव-छाँव चली।

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