कोई लाख हरारत ए गम दे दे कोई लाख जख्म अगन दे दे इस रूह में जल -जल कर के इस रूप में पिघल-पिघल कर के सब्र की सेज पे जमी रही "मैं" अपने वजूद में बनी रही , मैं अपने वजूद में बनी रही ।।


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