बिखरे हुए फूलों को संजोने लगी हूँ... ना जाने क्यों मैं फिर उदास होने लगी हू ... इन फूलों की तरह से बिखरे पडे हैं मेरे कुछ पल.... याद करके वो पल अब रोने लगी हू .... मेरी तन्हाईयों का आलम ना पूछे कोई ... जितना भी समेटना चाह उतना ही खोने लगी हू ...


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